बुधवार, 22 अगस्त 2018

कश्मीर में कट्टरपंथ चरम पर है

जब एक ही स्थान पर कई घटनायें घट जायें तो उनपर लिखना आसान नहीं होता। आप यह तय नहीं कर पाते कि प्राथमिकता किसको दें, जैसे आज मैं यह तय नहीं कर पा रहा हूँ कि कश्मीर से जुड़ी इन बातों में से प्राथमिकता किसको मिलनी चाहिए। जिन्हें जान से मार दिया गया उन्हें या जो जिंदा हैं उन्हें? जो जिंदा हैं उनके लिए चुनौती बढ़ती जा रही है। चुनौती यह कि वे कितने दिनों तक वहां जिंदा रहेंगे और किन शर्तों पर?
आज सुबह जब ऑफिस पहुंचा तो सोच रहा था कि ईद उल अजहा के बारे में कुछ जानकारी जुटा लूं क्योंकि आज ज्यादातर  इससे जुड़ी खबरें आयेंगी। परंतु वहां पहुंचते ही पता चला कि कुलगाम के रहने वाले फयाज अहमद शाह को आतंकवादियों ने गोली मार दी। फयाज जम्मू कश्मीर पुलिस में बतौर एसपीओ काम करते थे। दूसरी खबर मिली कि पुलवामा में बीजेपी के एक कार्यकर्ता को अगवा कर उसकी भी हत्या कर दी गई। इन ख़बरों को लिख ही रहा था कि श्रीनगर सोपोर, अनंतनाग जैसे इलाकों से ईद के नवाज के बाद सेना पर पत्थरबाजी की खबरें आने लगीं। पत्थरबाज सेना के जवानों को निशाना बनाते हुए आजादी के नारे लगा रहे थे। वे हाथ में पाकिस्तान और आईएसआईएस का झंडा लहरा रहे थे। उसके बाद खबर मिली कि फारुक अब्दुला को हजरतबल दरगाह में अपमानित किया गया है।  श्रीनगर के हजरत बल मस्जिद में फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ जमकर नारेबाजी हुई। उन पर जूते फेंके गए। ज्ञात हो कि अब्दुल्ला ने दिल्ली में अटलजी के श्रद्धांजलि समारोह में 'भारत माता की जय' का नारा लगाया था, इसके विरोध में उनसे बदसलूकी की गई। हजरतबल मस्जिद में फारूक अब्दुल्ला नारेबाजी के बीच भी चुपचाप बैठे रहे। इमाम ईद की नमाज शुरू करते इससे पहले दर्जनों युवा उन्हें वापस जाने को कहते रहे। नमाज का कार्यक्रम अस्त-व्यस्त हो गया। मजबूर होकर फारुक को वहां से लौटना पड़ा। शाम होते होते खबर आयी कि पुलवामा में ही एक और पुलिस वाले को गोली मारी गई है जिसने अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया।
आतंकियों की अगर गिनती की जाये तो वो अब मुश्किल से 200 से 250 होंगे। सोचने वाली बात यह है कि क्या 200 या 300 लोगों में इतनी क्षमता है कि वे एक रियासत को तबाह कर के रख दें? जवाब है नहीं.. दरअसल वहां की एक बड़ी आबादी इस मुल्क को अपना मानती ही नहीं है इस सच को हमें आपको और मेताओं को खासकर बीजेपी के नेताओं को मान लेनी चाहिए। वे लोग धर्मांध हैं और कट्टरता वादी सोच रखते हैं। हां, यह सच है कि वहां के ज्यादातर लोग इस देश को अपना मानते हैं। लेकिन इस देश को अपना न मानने वालों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है क्योंकि ये वही लोग हैं जो अपने ही लोगों का खून बहा रहे हैं, ये वही लोग हैं जिन्हें जय हिंद से परहेज है जिन्हें भारत माता की जय के नारे से परहेज है। अब सोचना सरकार को है कि वो उन लोगों के साथ कैसे निपटती है। तय जम्मू कश्मीर की जनता को करना है कि वो किसके साथ हैं और किसके खिलाफ। दोनों नाव पर पैर रखेंगे तो दोनों तरफ से मारे जायेंगे। एक तरफ शहीद कहलायेंगे तो दूसरी तरफ आतंकी। कश्मीर में कट्टरपंथ चरम पर है।

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...