रविवार, 12 अगस्त 2018

The house is adjourned for the day ( द हाउस इज अडजोर्न फॉर द डे)

साल 2004, मैं 8 वी कक्षा में प्रवेश कर चुका था। अवकाश का दिन था पिताजी पूजा कर रहे थे।  हमारी ब्लैक एंड व्हाइट ओनिडा टीवी पर  डीडी नेशनल लगा हुआ था। कोई और चैनल नहीं लग सकता था क्योंकि हम डिश कनेक्शन लगवाने में असमर्थ थे।  डीडी नेशनल पर एक सभा का प्रसारण किया जा रहा था जिसे मैं समझ नहीं पा रहा था। परंतु पिताजी  कान खड़े कर सब सुन रहे थे कभी-कभी हल्की मुस्कान के साथ देख भी रहे थे  साथ ही भगवान की सेवा भी चल रही थी, महादेव को नहलाया जा रहा था। अचानक टीवी में चींख पुकार मच गई। हर तरफ शोर... सभी बोल रहे थे लेकिन कोई किसी की सुन नहीं रहा था। पिताजी गौर से टीवी पर देखने लगे, महादेव नहा चुके थे वे अंग प्रक्षालन की प्रतिक्षा में थे परंतु टीवी पर मचे शोर की वजह से उन्हें थोड़ी प्रतीक्षा करनी पड़ी। मैं भी सब कुछ समझने की चेष्टा कर रहा था। मैने और गौर से देखना शुरु किया, सफेद कपड़ों में कुछ लोग हाथ उठाकर कुछ मांग कर रहे थे, कुछ लोग क्रोध से आग बबुले एक ही व्यक्ति शांत थे, वे उन सब के बीच राजा की तरह एक ऊंची कुर्सी पर विराजमान थे। वृद्धावस्था में ब्लैक एंड व्हाइट टेलिविजन पर भी उनकी झुर्रियां साफ देखी जा सकती थीं। वे बार बार सभी को कुछ समझाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन कोई समझने को तैयार नहीं था वे मौन हो गए कुछ देर तक सभी को निहारते हुए कहा...... द हाउस इज अडजोर्न फॉर द डे..... तब तक मां रसोई घर से पसीने पोठते हुए  आ चुकी थी हम समझ चुके थे कि अब क्या होगा इसलिए मैं और पिताजी दोनों अपने अपने काम में व्यस्त हो गए। मां बड़बड़ाते हुए टीवी बंद कर  दी.....( दिन भर नेता लोगों का पिटिर पिटिर लगा रखते हैं........)
 कुछ देर के बाद मैंने पिताजी से सवाल किया पापा ये लोग शोर क्यों मचाने लगे और वो ऊंची कुर्सी पर बैठा व्यक्ति कौन था?
पिताजी ने कहा लोकसभा की कार्यवाही चल रही थी जहां सत्ता पक्ष और विपक्ष में किसी बात को लेकर विवाद हो गया। वो ऊंची कुर्सी पर बैठा वयक्ति सोमनाथ चटर्जी है जो अभी इस सभा के अध्यक्ष हैं। उस वक्त शायद मैं उन चीजों को ठीक से समझ न सका लेकिन नागरिकशास्त्र में जब सदन वाला पाठ पढ़ाया गया तब काफी चीजें साफ हुईं।
उसी साल कक्षा में पढ़ाने के दौरान हमरे नागरिक शास्त्र( civics) के शिक्षक लोकसभा सभापति के बारे में पाठ पढ़ाने वाले थे जब तक वे पन्नों को पलटते तब तक उन्होंने सभी से सवाल किया कोई बता सकता है इस वक्त लोकसभा के सभापति कौन है? हमारी कक्षा में 116 विद्यार्थी थे उनमें से 60-70 विद्यार्थी हर रोज उपस्थित होते थे। उस सवाल का जवाब देने के लिए किसी का हाथ खड़ा नहीं हुआ, लेकिन मैंने कुछ देर की प्रतीक्षा के बाद जवाब दिया सर सोमनाथ चटर्जी..... सर ने कहा, क्या...? मुझे लगा शायद मैने गलत जवाब दे दिया है और उत्तर दोहराने की हिम्मत नहीं हुई। सर ने जोर दे कर पूछा क्या कहा तुमने...? अब मेरे पास कोई चारा नहीं था, सर सोमनाथ चटर्जी......... क्लास शांत था, क्लास में  सांस रोक देने वाली शांति छायी हुई थी.... कुछ पल ही बीते होंगे और मुझे कक्षा में अपनी बेईज्जती का डर सताने लगा था....तभी  आवाज आयी..... वेरी गुड........ उन दो शब्दों को  सुनने के बाद मेरी मनोदशा का विवरण शब्दों में न दे सकुंगा...।
आज सुबह उन्हीं सोमनाथ चटर्जी के निधन की ख़बर सुनी..। भगवान उनकी आत्मा को शांति दें.....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...