शनिवार, 8 सितंबर 2018

चीन और नेपाल को लेकर भारतीय मीडिया भय का माहौल बना रही है...


आज दिन भर देश के कई मीडिया संस्थानों ने नेपाल और चीन को लेकर एक भय का माहौल बनानेकी कोशिश की। खबर है कि चीन  ने नेपाल को अपने बंदरगाहों के उपयोग करने की अनुमति दे कर भरत के खिलाफ कोई चाल चल दी है. अब भारत का क्या होगा?  लेकिन ये चीन की कोई चाल नहीं है और न ही भारत को नीचा दिखाने के लिए किया गया कोई समझौता है। नेपाल के प्रधानमंत्री के पी ओली ने इस समझौते के फ्रेमवर्क पर तभी हस्ताक्षर कर दिए थे, जब 2016, मार्च में वो चीन की यात्रा पर गए थे. 6 सितंबर को दोनों देशों के अधिकारियों ट्रांजिट प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर कर प्रक्रिया को पूरा कर लिया. चीन आपके खिलाफ चाल चल रहा है खबर यह नहीं है खबर यह है कि नेपाल ने भारत को  झटका दिया है. नेपाल ने चीन के साथ ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके बाद वो अपने व्यापार के लिए भारत पर निर्भर नहीं रह जाएगा और उसे चीन के हर बंदरगाह से व्यापर करने की अनुमति मिल जाएगी और भारत पर नेपाल की निर्भरता बहुत कम हो जाएगी. लेकिन व्यवहारिक रुप से नेपाल और चीन के बीच व्यापार शुरू करने को लेकर अभी भी कुछ समस्याएं हैं. जैसे नेपाल में ट्रांसपोर्ट और इंफ्रास्ट्रक्चर की समस्या है. नेपाली बॉर्डर के पास सक्षम रोड और इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है, वहीं सबसे करीबी चीनी बंदरगाह बॉर्डर से 2,600 किलोमीटर दूर है. व्यापारियों का कहना है कि नेपाल को चीनी बंदरगाहों के साथ व्यापार करने के लिए उचित इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने की जरूरत है. निश्चय ही आने वाले दिनों में चीन नेपाल में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलॉप करने में अहम भूमिका निभायेगा। क्योंकि चीन के पास सामर्थ्य है और आप अपनी ही समस्याओं में उलझे हुए हैं. कुछ दिन पहले आपने भी रेलवे लाईन और सड़क मार्ग बनवाने के वादे किये थे। उस कार्य की समीक्षा कीजिए और चीन ने जो नेपाल में सड़क और अस्पतालें बनवाई हैं उसकी समीक्षा कीजिए. चीन को गाली देने से पहले अपने व्यवहार पर नजर डालिये। दूसरी बात यह है कि कोई भी स्वतंत्र राष्ट्र किसी एक राष्ट्र पर निर्भर नहीं रहना चाहेगा ख़ासकर तब जब उसके पास अच्छे और मजबूत विकल्प मौजूद हों. नेपाली दरअसल मधेसी आंदोलन के बाद से ही भारत से डरे हुए हैं और भारत पर से अपनी निर्भरता कम रखना चाहते हैं. अब मधेसी आंदोलन और मधेसियों के हक़ की बात यहां करना उचित नहीं होगा कम से कम तब क जबतक नेपाल खुद ऐसा न चाहे।  ये नेपाल का अपना मामला है। रही बात नेपाल से मैत्रीपूर्ण संबंधों की तो वो हमेशा बने रहेंगे। नेपाल हमारा मित्र राष्ट्र है। सांस्कृतिक रुप से नेपाल भारत से हमेशा जुड़ा रहेगा। उसे चीन अपने प्रलोभनों से तोड़ नहीं सकता।   मत भूलिये प्रचंड प्रधानमंत्री बनने के बाद सबसे पहले भारत आये थे चीन नहीं गए थे...

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...