शनिवार, 29 सितंबर 2018

कब तलक हम ख़्वाब घर के देखते?

तस्वीर में साफ साफ देखा जा सकता है  खुले नाले पर बने  सीमेंट के ढ़क्कन पर एक बिस्तर, बिस्तर पर दायीं करवट पर लेटा एक व्यक्ति.  बिस्तर जितना मैला दिख रहा है वास्तव में वो उससे कही ज्यादा मैला है. तस्वीर दिल्ली के न्यू अशोकनगर की है। यहीं से नोएडा की सीमा प्रारंभ हो जाती है। मैने खुद इस तस्वीर को कैद किया है. गुप्ता जी के पराठे वाले के पास से गुजर रहे नाले पर लेटे इस व्यक्ति को मैं नहीं जानता. परंतु देखकर आभास हुआ कि मजदूर है और पेंटिंग का काम करता है. कपड़ों पर पेंट के छिटे साफ देख पा रहा था। इच्छा हुई कि बात करुं लेकिन गहरी नींद में होने की वजह से मैने इन्हें परेशान नहीं किया. क्या पता दिनभर की मेहनत के बाद बदबूदार नाले पर लेटे लेटे कोई सुनहरा ख्वाब देख रहे हों. मुझे नहीं पता इनके पास घर नहीं है या किसी कारणवश इन्हें घर छोड़ देना पड़ा है. लेकिन एक बात तो तय है कि फिलहाल ये नाले पर सोने को मजबूर हैं. सरकार कह रही है कि साल 2022 तक सभी को घर मिल जायेगा उम्मीद है इन्हें भी मिलेगा. 
रह-गुज़र ही को ठिकाना कर लिया ,कब तलक हम ख़्वाब घर के देखते...  मनीश शुक्ला के इस शेर को हिंदुस्तान में लाखों की संख्या में लोग जी रहे हैं. इंटरनेट के आंकड़ों को सच माना जाये तो जनगणना 2011 के मुताबिक, भारत में करीब 17.72 लाख लोग बेघर हैं. जो भूटान की 797,765 और फिजी की 898,760 की जनसंख्या से लगभग दोगुनी है. देश के 14 प्रतिशत बेघर देश के टॉप पांच मेट्रो शहर में रहते हैं. इनकी कुल संख्या 245,490 है. जिसमें से ग्रेटर मुंबई में सबसे ज्यादा बेघर हैं. यहां करीब 95,755 लोगों के सिर पर छत नहीं है. दूसरे नंबर पर कोलकाता है जहां 69,798 लोग बेघर हैं. वहीं दिल्ली में 46,724, चेन्नई में 16,882 और बेंगलुरु में 16,531 लोग बेघर हैं.
अब आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि देश में जहां लाखों लोग अपने सर पर छत के लिए तरस रहे हैं वहीं कुछ छत ऐसे हैं जो लोगों के लिए तरस रहे हैं. शहरी भारत में लगभग 19 करोड़ परिवार ठीक से बने घर में नहीं रहते हैं। लेकिन, दूसरी तरफ शहरी भारत में, 10.2 मिलियन (1 करोड़ से ज्यादा) घर खाली हैं।

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...