संसार की कोई भी मां नहीं चाहती कि उसके संतान का अहित हो. जठराग्नि में अपनी भूख को तपाकर अपने संतान को दीर्घायु होने का वरदान एक मां ही दे सकती है. आज आपको एक ऐसे व्रत के बारे में बताने जा रहे हैं जो मां अपने बच्चों के लिए करती हैं. यह व्रत अपने आप में असाधारण है.हर उम्र की माताएं हजारों सालों से अपने संतान के उत्तम स्वास्थ्य और लंबे जीवन का वरदान पाने के लिए हर साल यह व्रत करती हैं. निर्जला व्रत, अर्थात व्रत की समाप्ति तक माताएं जल तक ग्रहण नहीं करतीं. मिथिला , मगध, अवध समेत कई हिस्सों में यह व्रत बड़े ही श्रद्धा के साथ रखा जाता है. .हिन्दू कैलेंडर के अनुसार जितिया व्रत अश्विन माह कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तक मनाया जाता है. अर्थात यह व्रत तीन दिनों का होता है. जितिया व्रत में पहले दिन को नहाय-खाय कहा जाता है. इस दिन महिलाएं नहाने के बाद एक बार भोजन करती हैं और फिर दिन भर कुछ नहीं खाती हैं. दूसरे दिन को खुर जितिया कहा जाता है. यही व्रत का विशेष व मुख्य दिन है जो कि अष्टमी को पड़ता है. इस दिन महिलाएं निर्जला रहती हैं. यहां तक कि रात को भी न तो कुछ खाया जाता है न ही पानी पिया जाता है. महिलाएं एक साथ बैठकर जितिया का पूजन करती हैं और जितिया की कहानियां कहती हैं. तीसरा दिन व्रत के पारण का होता है जिसके बाद भोजन ग्रहण किया जाता है.
मान्यताओं के अनुसार जितिया व्रत की कथा महाभारत काल से संबंधित है. कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत क्रोधित था. इसी के चलते वह पांडवों के शिविर में घुस गया. शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे. अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर उनकी हत्या कर दी. वे सभी द्रोपदी की पांच संतानें थीं. फिर अुर्जन ने उसे बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली. अश्वत्थामा अब भी क्रोधागनि में जल रहा था उसने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने की योजना बनाई. उसने उत्तरा के गर्भ को नष्ट करने के लिए ब्रह्मास्त्र का आहवान किया. उत्तरा ने ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया, ध्यान मग्न उत्तरा बिना कुछ खाये पिये श्री कृष्ण से अपने संतान के रक्षा की कामना करती रही. कहते हैं ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चा अचेत हो गया. भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में फिर से जीवित कर दिया. गर्भ में मृत्यु के मुख से लौटकर जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा. तभी से संतान की लंबी उम्र और मंगल के लिए माताएं जितिया का व्रत करती हैं और अपने संतान की रक्षा का वरदान मांगती हैं. आगे चलकर यही बच्चा राजा परीक्षित बना.
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