बुधवार, 17 अक्टूबर 2018

भारत के मंदिर सिर्फ प्रार्थना घर नहीं हैं

सबरीमाला मंदिर, केरल
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है. देश के इतिहास में शायद ऐसा पहलीबार हो रहा है जब सर्वोच्च न्यायालय के स्त्रीओं के पक्ष में दिये गए फैसले का स्त्रीयां ही विरोध कर रही हैं. हालांकि कुछ स्त्रीयां मंदिर में प्रवेश कर इतिहास रचने की कोशिश में भी लगी हैं.इनके अपने तर्क हैं जो नव हिंदूवाद का नारा बुलंद कर रही हैं. एक धड़ा परंपरावादियों का है जो सदियों से अपने पुर्वजों के इस सांस्कृतिक धरोहर को संभालते आये हैं. झगड़ा मंदिर में हर उम्र के स्त्रीओं के प्रवेश का है. एक-एक कर पता किया जा रहा है कि किन-किन मंदिरों में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है और महिला अधिकार के नाम पर कानूनी लड़ाई लड़ी जा रही है आधुनिकता वादियों के आगे परंपरावादियों की एक भी नहीं चल रही है. शनि शिंगणापुर के बाद कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमती दे दी है. 

 हम इस तर्क में जायें उसके पहले एक बात स्पष्ट करना जरुरी है कि भारत में सभी मंदिरों का निर्माण केवल
प्रर्थना के लिए नहीं हुआ है. हमारे देश के अलग-अलग मंदिरों को अलग-अलग कारणों से अलग तरीकों से बनाया गया है जिसके अलग-अलग महत्व रहे हैं.

जहां तक बात मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश की है तो भारत में बने हर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक नहीं है. बल्कि कुछ खास ऐसे मंदिर हैं जहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित है उनमें से एक शनि शिंगणापुर मंदिर भी है. शनि शिंगणापुर मंदिर का निर्माण गुप्त साधना या तंत्र-मंत्र के ध्येय से हुआ था. जहां तांत्रिक अपनी विद्याओं की सिद्धि के लिए साधना करते हैं. इन साधनाओं का असर गर्भवती स्त्रीओं और उन स्त्रीओं या लड़कियों पर भी पड़ सकता है जो ऋतुधर्म (मासिक धर्म) से गुजर रही होती हैं. ऐसे में स्त्रीओं के हितों को ध्यान में रखते हुए उनकी सुरक्षा के लिए निर्देश दिये गए कि अच्छा होगा कि वे अमुक स्थान से दूर रहें. यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि उनपर लिंग के आधार पर कोई भेद नहीं किया गया जैसा कि तथाकथित बुद्धिजिवियों द्वारा दुष्प्रचारित किया जाता रहा है. 

उसी तरह केरल के बहुचर्चित सबरीमाला मंदिर में भी ख़ास उम्र की महिलाओं पर प्रवेश वर्जित है. यहां भी महिलाओं के साथ भेद-भाव जैसी कोई बात नहीं है. अगर ऐसा होता तो हर उम्र की महिलाओं का प्रवेश मंदिर में वर्जित होता. सबरीमाला में भगवान अयप्पा विराजमान हैं.पौराणिक कथाओं के अनुसार अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (विष्णु जी का एक रूप) का पुत्र माना जाता है। इनका एक नाम हरिहरपुत्र भी है। हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव, इन्हीं दोनों भगवानों के नाम पर हरिहरपुत्र नाम पड़ा। एक अन्य मान्यता के अनुसार शिव और विष्णु की शक्तियों के मेल से भगवान अयप्पा प्रकट हुए. अयप्पा बाल ब्रह्मचारी हैं. 
मान्यता के अनुसार भगवान अयप्पा के दर्शन का लाभ लेने के लिए श्रद्धालुओं को 40 या उससे अधिक दिनों से खुद को शुद्ध रखना पड़ता है. स्त्रीयां लगभग 30 दिन के बाद ही मासिक धर्म से गुजरती हैं अर्थात वो लगातार 40 दिन तक स्वयं को शुद्ध नहीं रख पाती हैं. तो वे मंदिर में प्रवेश नहीं करती.

एक अन्य मान्यता के अनुसार एक बाल ब्रह्मचारी होने के नाते अयप्पा स्त्रीओं से स्वयं को दूर रखते हैं खासकर उन स्त्रीओं से जो जनन के योग्य होती हैं. उनकी इस इच्छा का पालन मंदिर के पुजारी चिर काल से ही करते आ रहे हैं.  

हमें मंदिरों में प्रवेश को लेकर भेद-भाव का आरोप लगाने से पहले वहां के इतिहास को और पौराणिक मान्यताओं को जानना होगा. अगर लिंग के आधार पर कहीं किसी का जाना वर्जित किया जाता है तो जरुर उसमें सुधार किया जाना चाहिए लेकिन अगर कारण कुछ और है तो पहले आश्यकता उसे समझने की है.अगर आप पौराणिक मान्यताओं को नहीं मानते तो फिर मंदिर में प्रवेश को लेकर आपकी श्रद्धा पर संदेह होगा और बिना श्रद्धा के मंदिरो के अपेक्षा पार्क में जाना ज्यादा उचित होगा. 

क्या आप जानते हैं? देश में सैकड़ों ऐसी मंदिरें हैं जहां पुरुषों का प्रवेश वर्जित है. उनमें से एक सावित्री का मंदिर है जो पुष्कर राजस्थान में स्थित है. पुष्कर में दुनिया का इकलौता ब्रह्मा जी का मंदिर है , इससे थोड़ी दूरी पर सावित्री देवी का मंदिर है। इस मंदिर में केवल महिलाएं ही प्रवेश कर सकती हैं. पुरुष बाहर से ही माथा टेक सकते हैं. कोयंबटूर के लिंग भैरवी मंदिर में भी पुरुषों का जाना वर्जित है. प्रथा के अनुसार यहां की रस्मों रिवाज में पुरुष शामिल नहीं होते हैं. केरल में ही भद्रकाली के मंदिर में पोंगल का बहुत बड़ा आयोजन होता है। इस आयोजन में लगभग 30 लाख से भी ज्यादा महिलाएं शामिल होती हैं।10 दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम में पुरुषों का प्रवेश मंदिर में वर्जित रहता है। 

देश में लाखों मंदिर हैं जहां पुरुष और हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर किसी तरह का कोई रोक टोक नहीं है.बात अगर भेद की होती तो हर मंदिर में प्रवेश पर रोक लगाई गई होती. इसे भेद-भाव से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. इसकी अपनी मान्यताएं और परंपराएं हैं और ऐसे नियम हैं जो स्त्री और पुरुष के प्रकृति के अनुसार भी बनाये गए हैं.  क्या सुप्रीम कोर्ट या दुनियां का कोई भी कोर्ट समानता के नाम पर स्त्री और पुरुष के प्रकृति को बदल सकता है?

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...