रविवार, 28 अक्टूबर 2018

राजनीति की भाषा और प्रदूषित होगी

     
शशि थरुर, जिग्नेश मेवानी
हमारे देश की राजनीति में अपनी बात को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए भाषायी मर्यादाओं का हनन नई बात नहीं है. पिछले कुछ दशकों में राजनेताओं की भाषा बेहद खराब होती चली गई है. इसमें कोई किसी से कम नहीं है. भाजपा हो चाहे कांग्रेस विपक्ष में रहते हुए दोनों के दोनों दलों के नेता अपनी भाषायी मर्यादा की हदें पार करते रहे हैं. जिसे जितना अधिक विद्वान माना गया उसने उतनी अधिक भाषायी मर्यादा लांघी है. शशि थरुर उनमें से एक हैं. थरूर ने दावा किया कि आरएसएस के एक नेता ने एक पत्रकार से कहा कि मोदी शिवलिंग पर चिपके बिच्छू की तरह हैं, जिसे न तो हटाया जा सकता, और ना ही चप्पल से मारा जा सकता है. आरएसएस के नेता ने ऐसा कहा कि नहीं वह तो थरुर ही जानें लेकिन आरएसएस के उस नेता के नाम पर थरुर ने मीडिया और भाजपा को मुद्दा जरुर दे दिया है. निश्चय ही भाजपा ईंट का जवाब पत्थर से दे कर थरुर के इस बयान का इस्तेमाल कर के कांग्रेस को घेरने की कोशिश करेगी. थरुर के इस बयान के बाद बीजेपी के रविशंकर और शहनवाज ने मोर्चा संभाल लिया है. भाजपा के नेता भी दूध के धूले नहीं हैं लेकिन इस वक्त वे पीड़ित की तरह वर्ताव करेंगे. 
कांग्रेस और बीजेपी के अलावा छोटे नेता भी अपना कद बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री पर लागातार हमलावर होते रहते हैं. जान बुझकर वे ऐसे बयान देते हैं ताकि इन्हें मीडिया फूटेज मिल सके वे अपनी मनसा में कामयाब हो भी जाते हैं. जिग्नेश मेवानी इसकी ताजा मिसाल हैं. कुछ दिन पहले पटना में उन्होंने भी प्रधानमंत्री को भला बुरा कहा था.
यह पहली बार नहीं था जब जिग्नेश मेवानी ने भाषा की मर्यादा लांघी है... इसके पहले भी कई बार वे प्रधानमंत्री के खिलाफ आक्रमक हुए हैं... https://rajankumarjha1.blogspot.com/2017/12/blog-post_21.html इस लिंक पर जाकर आप जिग्नेश के पहली बार विधायक बनने के बाद दिये साक्षातकार पर मेरी टिप्पणी पढ़ सकेंगे. उस वक्त भी उन्होंने भाषा की मर्यादा लांघी थी. पटना के गांधी मैदान में भाकपा की रैली में शिरकत करने पहुंचे  गुजरात के  विधायक जिग्नेश मेवानी ने एक बार फिर से प्रधानमंत्री के प्रति आक्रमकता दिखाने की कोशिश की. इसके  लिए उन्होंने न शब्दों की मर्यादा का ख्याल रखा न ही प्रधानमंत्री के पद की गरिमा का ही सम्मान किया. अपने 9 मिनट के भाषण में जिग्नेश ने 6 बार पीएम को अपशब्द कहे... उन्होंने प्रधानमंत्री को कोसने के लिए कई बार नमक हराम शब्द का इस्तेमाल किया. उन्होंने गुजरात में बिहारियों की पीटाई का मुद्दा उठाया परंतु अल्पेश ठाकोर पर एक भी शब्द नहीं कहा... परंतु पीएम मोदी को नमक हराम कहते हुए मामले पर बयान न देने को लेकर अपनी नाराजगी जताई थी. आश्चर्य की बात है जिग्नेश ने प्रधानमंत्री को तो खरी खोटी सुनाई लेकिन अल्पेश ठाकोर के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा.
जिस तरह का माहौल बनाया जा रहा है इसमें कोई शक नहीं है कि आने वाले दिनों में विशेषकर 2019 के आम चुनावों से पहले राजनीति की भाषा और प्रदूषित होगी.

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...