मंगलवार, 19 नवंबर 2019

बीएचयू धर्म विज्ञान संकाय में केवल संस्कृत भाषा की शिक्षा नहीं दी जाती...

बीएचयू में संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में डॉ. फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर छात्र विरोध कर रहे हैं... इस विषय पर मैं छात्रों के साथ हूं.  जैसा कि हमेशा होता है मीडिया का एक बड़ा वर्ग छात्रों के खिलाफ है.. क्योंकि वे अपनी संकीर्ण सोच से ये झूठ प्रसारित करने में लगे हैं कि  फिरोज खान की नियुक्ति का मसला महज ‘संस्कृत भाषा’ का है. जबकि ऐसा नहीं है..  किसी मुसलमान के संस्कृत सिखने से जानने और पढ़ाने से हमें आपत्ती नहीं है बल्कि खुशी है...  विद्यार्थियों का माँग सिर्फ इतना है कि संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में किसी मुस्लिम या ईसाई का प्रवेश न हो.. वहाँ वही हो जो सनातन परंपरा और हिन्दू धर्म को मानने वाले और जीने वाले हों ताकि विद्यार्थी सनातनी विद्या ग्रहण कर सकें. एक मुसलमान संस्कृत भाषा का ज्ञानी तो हो सकता है लेकिन सनातन परंपराओं, गुरु शिष्य परंपराओं वैदिक जीवन पद्धति, नित्य कर्म पद्धति  तक का ज्ञानी या पालन करने वाला नहीं हो सकता... संस्कृत भाषा का जानकार होना अलग बात है और कर्मकांड में परांगत होना अलग. मैं दावे के साथ कहता हूं सनातनी कर्मकांड के ज्ञाता हिंदू छोड़िये ब्राह्मण भी अब गिने चुने ही होंगे.. उसमें से भी काभी कम होंगे जो इसका पालन करते होंगे..ऐसे में एस ऐसे व्यक्ति जो भाषा के तो जानकार हैं लेकिन पद्धतियों के नहीं उन्हें कैसे धर्म विज्ञान में गुरुपद मिल सकता है?  जो सनातनी देवी देवताओं और परंपराओं में आस्था ही नहीं रखते वो भला शिष्यों को उनका तत्व ज्ञान कहां से दे पायेंगे ? क्योंकि बात सिर्फ किताबी ज्ञान की नहीं आध्यात्म दिनचर्या आदतों और संस्कार की है..
 स्पष्ट रहे कि मामला संस्कृत भाषा का नहीं है. बीएचयू में संस्कृत भाषा और साहित्य का अलग विभाग है...जहां वे अध्यापन का काम कर सकते हैं किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी,  लेकिन फिरोज खान की नियुक्ती संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में हुई है..  जिसकी स्थापना महामना मदन मोहन मालवीय जी ने ‘हिन्दू सनातन धर्म’ की रक्षार्थ और हिन्दू धर्म की ‘वैज्ञानिक व्याख्या’ और इसके संरक्षण के लिए किया था. जहाँ आज भी वैदिक गुरुकुल रीति से ही विद्या अर्जन होता है...  अर्थात वे आम कूल ड्यूड स्टूडेंट्स और बेब्स की तरह नहीं बल्कि सनातन गुरुकुल पद्धति से विद्या ग्रहण करते हैं...  विद्यार्थियों का कहना है कि वे ऐसे व्यक्ति  का चरण स्पर्स कर आशिर्वाद कैसे लेंगे जो कि इसमें आस्था ही नहीं रखता... वे पाप के भागीदार होंगे क्योंकि वे भविष्य के पुरोहित हैं.  एक कर्मकांडी पुरोहित केवल संस्कृत भाषा का ही जानकार नहीं होता...  इसके इतर  मंत्रों और अनुष्ठानों का विशेषज्ञ भी होता है. किसी नास्तिक वीसी को यह अधिकार नहीं कि सनातन धर्म के श्रोत स्थलों को लक्ष्य कर के परंपरा खंडित करने की कोशिश करे...  वीसी उन्हें कला संकाय में स्थानांतरित कर सकते हैं जहां वे संस्कृत पढ़ा सकते हैं लेकिन संविधान के नाम पर वे बाल हठ पर अड़े हुए हैं.
 वेद, व्याकरण, ज्योतिष, वैदिक दर्शन, धर्मागम, धर्मशास्त्र मीमांसा, जैन-बौद्ध दर्शन के साथ-साथ इन सबसे जुड़ा साहित्य। क्या ये विषय महज साहित्य हैं? कम से कम मैं तो ऐसा नहीं चहुंगा कि इन विषयों को वो लोग पढ़ाएँ जिनका इनके मर्म और मूल्यों से कोई वास्ता ही न हो? क्या आप चाहेंगे कि इनकी इस्लामी और ईसाइयत मिश्रित व्याख्या हो?

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...