नागरिकता संशोधन विधेयक पर एक बार फिर से हिंदू मुसलमान हो रहा है. बहुत लोग कहते फिर रहे हैं कि यह बिल तो मुसलमान विरोधी है. हिंदूओं के लिए है वगैरा वगैरा...तो सवाल यह कि अगर बिल मुसलमानों के लिए नहीं है और बाकी धर्म के लोगों के लिए है तो इससे भारतीय मुसलमानों को नुकसान क्या होरहा है? क्या भारतीय मुसलमानों की नागरिकता वापस ली जा रही है और उनकी नागरिकता लेकर बाकी के लोगों को दी जा रही है? नहीं न फिर हंगामा क्यों? किनके लिए?पहले आपको इस बिल के बारे में कुछ जानकारी दे दूं जो मैंने गूगल और अपने सीनियर्स से बात-चीत कर के जमा किया है.इस बिल का सीधा संबंध घुसपैठियों को खदेड़े जाने से है. देश में घुसपैठियों का मामला काफी समय से चर्चा का विषय है. घुसपैठियों को देश से बाहर करने की दिशा में सबसे पहले असम में एनआरसी यानी नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस पर काम हुआ. नागरिकता संशोधन विधेयक भी इसी कवायद का हिस्सा है, जिसमें भारत के कुछ पड़ोसी देशों से आए धार्मिक समूहों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाने का प्रावधान है. इन समुहों में मुसलमान शामिल नहीं है.नागरिकता संशोधन विधेयक में नागरिकता कानून, 1955 में संशोधन का प्रस्ताव है. इसमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्मों के शरणार्थियों के लिए नागरिकता के नियमों को आसान बनाना है. मौजूदा समय में किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 11 साल से यहां रहना अनिवार्य है. इस नियम को आसान बनाकर नागरिकता हासिल करने की अवधि को 1- 6 साल किया गया है. यानी इन तीनों देशों के छह धर्मों के बीते एक से छह सालों में भारत आकर बसे लोगों को नागरिकता मिल सकेगी. आसान शब्दों में कहा जाए तो भारत के तीन पड़ोसी मुस्लिम बहुसंख्यक देशों से आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने के नियम को आसान बनाये जाने की कोशिश की गई है ताकि इन शरणार्थियों को हिंदुस्तान की नागरिकता मिल सके.इस बिल का विरोध सिर्फ इसलिए हो रहा है क्योंकि बिल मुसलमानों को छोड़कर बाकी के धार्मिक समुदायों के लिए है.आप सोच रहे होंगे कि मुसलमानों के साथ यह अन्याय आखिर क्यों?क्या देश हिंदू राष्ट्र बनने जा रहा है? देश हिंदू राष्ट्र बनने जा रहा है इस सवाल का जवाब आपको सन 1947 के 2 नेशन थ्योरी में ढ़ूंडना होगा. पाकिस्तान के बनने के पिछे के तर्कों को जानने के बाद यह सवाल आप स्वंय से करें कि भारत हिंदू राष्ट्र है अथवा नहीं.
अब लौटिये मुसलमानों के साथ हो रहे अन्याय पर....जब देश बंट रहा था उस वक्त दोनों तरफ से बड़ी जनसंख्या उधर से इधर हो रही थी. पाकिस्तान इस्लामिक मुल्क बना जहां हिंदुओं के लिए कोई स्थान नहीं था. जो थे उन्हें खदेड़ दिया गया कनवर्ट होने के लिए मजबूर किया गया जो न हुए उन्हें मार दिया गया हिंदू महिलाओं और संपत्ति की बंदरबांट हुई. बलात्कार से लेकर हर तरह की हैवानियत हुई. जो हिंदू हिम्मत कर के भगवान भरोसे वहां रह गए धीरे-धीरे या तो भारत की तरफ कूच कर गए या खत्म होते गए. तात्कालिक सरकार की उदासिनता की वजह से उन हिंदुओं की जान तो यहां बच गई लेकिन वे और उनकी आने वाली पीढियां यहां खानाबदोस बनकर रह गए.सड़क के किनारे फटे टैंट उनके नये घर बने जहां उनकी रातें ठंड से ठिठुरते हुए कटती और दिन बरसात में भींगते हुए. समय बीतता गया पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से मुसलमानों के सताये इन लोगों को हिंदुस्तान ने भी पूरी तरह नहीं अपनाया. अब जा कर केंद्र की बीजेपी सरकार इस दिशा में कदम उठा रही है. तो इस पर विरोध हो रहा है. कहा जा रहा है मुसलमानों के साथ भेद-भाव हो रहा है... लेकिन कोई यह नहीं कह रहा कि मुसलमानों ने तो अपने लिए मुल्क ले लिया था... जिन मुसलमानों को हिंदुस्तान में रहना था वो रह रहे हैं... फल फूल रहे हैं.... जिन्हें यहां नहीं रहना था वे यहां से चले गए...या वहीं रह गए... फिर चोरी छुपे आ गए... और चाहते हैं कि यहीं रहें... अब सवाल यह कि जब आपने पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे देश ले लिया फिर वहीं रहिये... यहीं की नागरिकता क्यों चाहिए औऱ अगर यहीं की नागरिकता चाहिए तो फिर हमारे देश के टुकड़े कर के अलग देश क्यों बना लिया? यह कैसे होगा कि जो हिंदू और दूसरे धर्म के लोग आपके यहां रह गए उन्हें वहां से खदेड़ या मार देंगे. फिर आप अलग देश लेकर भी यहां की नागरिकता लेंगे और कालांतर में देश को फिर से विभाजित कर देंगे.इस बिल का विरोध तो तब किया जाता जब भारत से पाकिस्तान और बांग्लादेश को धार्मिक आधआर पर अलग नहीं किया गया होता. ... धन्यवाद....
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