इनके बाप दादाओं ने इन्हें किस्से नहीं सुनाये कि कैसे हजारों हिंदूओं की लाशों पर देश तोड़ दिया गया और इस्लामिक देश बना... फिर भी उन्हें यहां रहने दिया गया.. आज ये फिर से आज़ादी मांग रहे हैं.. इन्हें सताये गए हिंदुओं से इतनी घृणा है कि उनका दर्द नहीं दिख रहा.... तंबुओं में नागरिकता की आस में उम्र बिता देने वाले लोगों से इन्हें क्यों सहानुभूति होने लगी? कुछ गिने चुने लोगों के अलावा कोई भी पत्रकार व्यक्ति या संस्था पाकिस्तान, बांग्लादेश से मार कर खदेड़ें गए हिंदुओं के पक्ष में एक दिन का आंदोलन करते भी नहीं दिखती... भंडारा खिलाने के नाम पर उन्हें किसी प्रयोजित आंदोलन में बुलाया गया.. कहीं 100-50 की संख्या में जमा हुए भी तो उन्हें कवर करने न कैमरे वाले पहुंचे न उन्हें खाना खिलाने के लिए भंडारे किये गए फ्री वाले... इस लिए शायद आंदोलन किये ही नहीं गए...किया भी गया होगा तो कोई बुजुर्ग पत्रकार लाइट कैमरा के साथ एक्स करता नज़र नहीं आया. इस बेचारी महिला को न तो इतिहास पता है न वर्तमान की सही जानकारी है. जो जानकार हैं वे मुस्कुरा रहे हैं कैमरे पर एक्टिंग लिखी हुई पटकथा के अनुरुप हो रही है डायलॉग निराधार ही सही फिट बैठ रहे हैं... कौन बिच में टोकने की जहमत उठाये पोल जो खुल जायेगा... स्टोरी खराब हो जायेगी...
सबसे ज्यादा डर में इस वक्त ट्रेन के टीटी हैं. हालात ऐसे हैं कि अगर यात्रा के समय इस तरह के किसी महिला या पुरुष से आई कार्ड मांग लिया तो रोते हुए कहीं ये न कहा जाये कि अमित शाह और मोदी के कहने से वे आई कार्ड या टिकट क्यों दिखाये ये देश हमारा भी है हमारे बाप दादा यहां रहे आज हमें आई कार्ड दिखाने के लिए कहा जा रहा है ... हमें इससे आज़ादी चाहिए. हम अपने बच्चों के लिए अपने लिए लड़ेंगे. प्लेट फॉर्म पर ही धरना देंगे तब तक जब तक मोदी-शाह आकर यह न कह दे कि अब से ट्रेन में मुसलमानों का टिकट और आई कार्ड चेक नहीं किया जायेगा.
इस कंपकंपाती सर्दी में बुजुर्ग हो रहे पत्रकार की पीड़ा भी समझिये. कैसे यह बुजुर्ग पत्रकार लंबी कोट और मोटा चश्मा लगाकर चमचमाती मोबाइल की रौशनी में रिपोर्टिंग कर रहा है.. ऐसा सच्चा रिपोर्टर कहीं देखा जो आंदोलनकारियों को जान बुझ कर NRC और CAA का अर्थ नहीं समझा रहा है.. जो यह नहीं कह पा रहा कि बहन जो आप कह रही हैं सोच रही हैं ऐसा तो कुछ है ही नहीं... लेकिन वो ऐसा नहीं कहेंगे क्योंकि अगर ऐसा कह दिये तो न तो उनका कोट बचेगा न चश्मा. वैसे भी प्रोपगेंडा पत्रकारों को और चाहिए क्या? झूठ के नाम पर ही सही कैमरे पर एक महिला ने दो घड़ियाली आंसू बहा दिये हैं प्राइम टाइम करने के लायक फुटेज हो गया... सच और झूठ से क्या मतलब मोदी शाह को घेरने से मतलब है. जितना आंदोलन चलेगा उनती खबर मिलेगी.. आंदोलन में शामिल महिलाओं को भी खाना बनाने के काम से फुर्सत मिल गया है.. दोनों एक दूसरे के पूरक की तरह काम कर रहे हैं.
रोज स्टूडियो और फेसबुक पर ज्ञान देने वाले रवीश कुमार दूसरों को हिंदू मुस्लिम न करने की सलाह देते फिरते हैं सही है वे कहते हैं हिंदू मुस्लिम नहीं सिर्फ मुस्लिम मुस्लिम करना ही असली सेकुलरिज़्म है. मुस्लिम शब्द ही इतना चमत्कारी है कि इसके आगे फैक्ट वैक्ट सही गलत असली नकली मायने नहीं रखती. (सिर्फ हमारे देश में ,उदाहरण आपके सामने है)
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