प्रयास भी न कर सका तो क्या किया ?
दरिद्र जो जनम हुआ इस पर किसका हठ चले?
दरिद्र ही मरण हुआ तो दोष किस पर मढ चलें?
बुरा हर दिवस नहीं, सदा कोई विवश नहीं
संकल्प को साकार भी न कर सका तो क्या किया?
प्रयास भी न कर सका तो क्या किया ?
राह चलते जा रहे..रास्ता कही नहीं..
कभी-कभी है सोचता क्या डगर सही नहीं?
उद्देश्य मन से चुन कर देख पथ भी है यहीं कहीं.
पग भी न बढ़ा सका तो क्या किया?
प्रयास भी न कर सके तो क्या किया?
मन से ही तो हार है मन से ही है जीत भी
मन में भय का नाद है मन में जय के गीत भी
मन से ही है शत्रुता मन से ही है मीत भी
मन के अंधकार को परास्त भी न कर सका तो क्या किया?
प्रयास भी न कर सके तो क्या किया?
जीत (तो) बस समर में है, भाग्य तेरे कर में है
उलझा किस भंवर में है..लक्ष्य तो डगर में है.
ताप अब पवन में है.. देख सूर्य गगन में है.
कर्म पर भी न वश चला तो क्या किया?
प्रयास भी न कर सका तो क्या किया ?
एक ही है जिंदगी एक ही मरण भी है.
जन्म जो लिया है तो मृत्यु तक रुके फिर क्यों?
जिंदगी ने क्या दिया? जो दिया सो दिया ..
सहज इसे स्वीकार भी न कर सका तो क्या किया
प्रयास भी न कर सका तो क्या किया ?
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