नेपाल की सरकार ने चीन के इशारे पर अपना नया नक्शा संसद में पेश किया था. जिसमें भारत के कई हिस्सों को नेपाल का दिखाया गया. उसके कुछ दिनों के बाद खबर फैली की चीन और नेपाल दोनों बैकफुट पर चले गए. भारतीय मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर जमकर भारतीय कूटनीति की प्रशंसा की गई.
सच यह है कि नेपाल ने अपना विवादित नक्शा वापस नहीं लिया. खबर यह है कि इस नक्शे को वहां की प्रमुख विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस का समर्थन मिल चुका है. काठमांडू पोस्ट के मुताबिक नेपाल के नये नक्शे से संबंधित विधेयक को जब मतदान के लिए प्रस्तुत किया जाएगा, नेपाली कांग्रेस पार्टी इसका समर्थन करेगी.
रही बात चीन की.. तो चीन के साथ डोकलाम और पूर्वी लद्दाख में अब भी तनाव जारी है. अगर चीन बैकफुट पर होता तो सबसे पहले वह अपनी सेना वापस बुला लेता क्या ऐसा हुआ?
हां, आप यह कह सकते हैं कि इन मामलों में भारत ने सख्त रवैया दिखाया है. चीन को जवाब देने के लिए भारत ने भी सरहद पर अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी है. वहीं नेपाल को सख्त संदेश दिया गया है. परंतु क्या इससे दोनों देश बैकफुट पर चले गए जवाब है नहीं.
भारत में बैठे चीन के एक अधिकारी ने जो भी कहा उसे सच मानना 1962 वाली गलती दोहराने जैसा ही होगा. चीन को समझने के लिए एक घटना का जिक्र करता हूं जिससे चीन को समझने में मदद मिलेगी. अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन चीन गए. चीन के डिक्टेटर माओ उन्हें लंबी यात्रा पर ले गए. T point पर ड्राइवर ने पूछा " कॉमरेड माओ किस दिशा में चले - लेफ्ट या राइट?" माओ ने उत्तर दिया " सिग्नल लेफ्ट का दो और राइट डायरेक्शन में चल दो".
अंत में केवल इतना कहूंगा कि सतर्क रहने को कमजोर होना नहीं कहते बुद्धिमानी कहते हैं.
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