आप अगर बिहारी नहीं भी हैं तो क्या आपका यह फर्ज नहीं है कि अपने मां-बाप की देख भाल करें?
शेखर गुप्ता की वेबसाइट ‘द प्रिंट’में एक लेख छपा है कि ‘विषाक्त’ बिहारी परिवारों में बच्चों पर श्रवण कुमार बनने की जिम्मेदारी होती है. सासें अपनी बहुओं को ‘डायन’ और ‘गोल्ड डिगर’ तक कहती हैं. दावा किया गया है कि युवाओं के शहरी गर्लफ्रेंड को सारी चीजों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है. इस लेख में बताया गया है कि परिवार के लोग बड़े होने पर भी युवाओं को ‘मेरा लाड़ला’ समझते हैं. शादी के मामले में उसके विचारों को नहीं मानते. लिखा गया है कि गर्लफ्रेंड या पत्नी पुरुष को उसके परिवार से अलग कर देती है, बिहार में ऐसी धारणा है, साथ ही इसमें बिहारी लोकगीतों को भी लपेटा गया है.
बिहारियों के सम्मान में लिखा गया यह लेख सुशांत सिंह राजपुत के मामले को जोड़ते हुए इसी पर आधारित है. जहां बेटे की संदिग्ध मौत के बाद न्याय मांग रहे बाप को दोषी ठहराने की कोशिश हो रही है. लेख किसी ज्योति यादव ने लिखा है, मुझे नहीं पता वो अपने मां-बाप से साथ कैसा बर्ताव करती है या अपने सास ससुर (अगर होंगे) तो क्या करती होगी या करेगी लेकिन इतना पता है कि उन्हें न तो बिहारी लड़कों के बारे में जानकारी है न ही बिहार के समाजिक व्यावस्था की.
बात अगर सास और बहु के बीच के रिश्तों की है तो आप इमानदारी के साथ बतायें कि क्या बहुओं पर अत्याचार की ख़बरें सिर्फ बिहार से आती हैं?
बात अगर मां-पिता के आज्ञाकारी होने की है तो इसे सकारात्मक समझना चाहिए या नकारात्मक?
साहित्य से लेकर सिनेमा तक अनगिनत बार नायक की गर्लफ्रेंड और परिवार में अनबन हुई है, इनमें से कितने बिहार पर आधारित कहानियाँ हैं?
सुशांत सिंह राजपूत के बारे में अपनी तरफ से धारणायें बनाकर बिहार और बिहारियों को कोसने वाले दरअसल खुद को स्वच्छंद रखना पसंद करते हैं. पारिवारिक प्रेम को पाबंदी समझने वालों को श्रवण कुमार होना दवाब लगेगा और परिवार का प्यार विषाक्त लगेगा.
अब बात उसी इंडस्ट्री की करते हैं जिससे जुड़ा हुआ मामला है. श्रीदेवी, परवीन बॉबी, गुरुदत्त और दिव्या भारती की मौत भी संदिग्ध हुई है. इनमें से कितने कलाकारों के राज्य वालों को गाली दी गई? इंद्राणी मुखर्जी के मामले में कहां पूरे बंगाल को कुछ कहा गया?
बिहारी लोक गीतों की भी चर्चा है तो बिहार में शादी के मंडप पर बैठे दामाद को भी गाली दी जाती है? अलग अलग विधान का पालन करते हुए ससुराल पक्ष की औरतें क्या से क्या नहीं कहती... तो क्या इसके लिए लेख लिख दिया जाएगा कि शादी के लिए गए बेचारे दूल्हे को टॉक्सिक महिलाएँ मिल कर गाली दे रही हैं? ऐसा वही कर सकते हैं जिन्हें इन चीजों की समझ ही नहीं.
सुशांत सिंह राजपूत की मां का निधन काफी पहले हो गया था उस वक्त शायद वे किशोर थे. मुंबई में सुशांत के पिता उनके साथ नहीं रहते थे. वृद्ध होने के बावजूद वे पटना में रहते थे. ऐसे में सुशांत पर मेरा लाडला वाली बात भी फिट नहीं बैठती.
एक वृद्ध पिता अपने जवान बेटे के असमय मौत के बाद केवल इतना ही तो चाहते हैं कि मामले की निष्पक्ष जांच हो जाये. क्या एक पिता को यह अधिकार भी नहीं है कि मिले सबूतों के आधार पर अपने बेटे के मौत की जांच की मांग कर सकें?
अंत में केवल इतना ही कहूंगा श्रवण कुमार बनने का अर्थ अपनी जिम्मेदारी निभाना होता है, यह कोई बोझ नहीं होता.
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