गुरुवार, 3 दिसंबर 2020

किसानों का आंदोलन या बिचौलियों का ?


कृषि कानूनों को लेकर  किसानों के आंदोलन का आठवां दिन गुजर चुका है.  कई राउंड की बातचीत हुई जो अभी तक बेनतीजा रही है.  आगे फिर से बातचीत की बात कही गई है.  मुझे नहीं पता बातचीत से क्या हल निकलेगा? सरकार झुकेगी या तथाकथित किसान नेता.. तथाकथित क्यों कह रहा हूं आगे पड़ते हुए आपको पता चल जायेगा.  इन सब के बीच एक बात याद रखें अगर सरकार झुकती है तो किसानों को नुकसान होगा फायदा अड़ातियों या बिचौलियों को होगा...  क्योंकि इस बिल से सबसे ज्यादा किसी को नुकसान है तो इन्हीं बिचौलियों को....यही कारण है कि कुछ भोले -भाले किसानों को झूठ- सच बोलकर भड़काया गया है और भड़काने की कोशिश हो रही है. 

क्यों बेनतीजा है बातचीत? 

सरकार और किसानों के बीच बातचीत के बेनतीजा रहने का सबसे बड़ा कारण यही है कि किसानों के जो प्रतिनिधी बातचीत में शामिल हैं वे सिर्फ इतना चाहते हैं कि किसी तरह तीनों एक्ट वापस ले लिए जायें. उन्हें इस बात से कोई मतलब ही नहीं है कि बिल किसानों के पक्ष में है या नहीं... उन्हें इस बात से भी लेना देना नहीं है कि इससे किसानों को कितना फायदा है या नुकसान... उन्हें केवल इतना पता है कि इस बिल से बिचौलियों को नुकसान ही नुकसान है...  

बातचीत के दौरान सरकार के प्रतिनिधियों का कहना है कि बिल पर बिंदुशः बात हो...  किसान एक-एक बिंदु को पढ़ें व उस पर चर्चा करें या सरकार को समझायें कि कैसे  एक्ट की अमुक बात किसानों के लिए नुकसानदेह है...  परंतु किसानों के प्रतिनिधी ऐसा चाहते ही नहीं हैं ... किसान के ज्यादातर  प्रतिनिधियों ने  सरकार से एक्ट पर बात करने से इंकार कर दिया और एक्ट को वापस लेने की मांग करते रहे... इससे उनकी मनसा का अंदाजा लगाया जा सकता है...  

यह आंदोलन बिचौलियों का है या किसानों का निर्णय आपको ही करना है...  

आंदोलन में शामिल लोग या संस्थाएं असल में किसानों के लिए लड़ रही हैं या अपने लिए? इस पर भी विचार आप ही करें...  

बात साल 2008 की है..  कांग्रेस सरकार ने निजी कंपनियों को किसानों की फसल खरीदने से रोकने का निर्णय किया था... तब भारतीय किसान यूनियन मनमोहन सरकार के इस निर्णय का पुरजोर विरोध कर रहा था और निजी कंपनियों को किसानों की फसल खरीदने की छूट देने की मांग कर रहा था...आज जब मोदी ने देशभर के किसानों को यह छूट दे दी है कि वे अपनी फसल जहां चाहे जिसको चाहे बेच सकते हैं तो यही लोग दिल्ली की सड़कों पर नये कृषि कानून का विरोध कर रहे हैं. सरकार बदलने के साथ विचारों का भी बदलाव हो जाता है...  एक और  बात जो विचार करने योग्य है, नये कृषि कानून को पंजाब सरकार ने राज्य में लागू ही नही किया है जबकि आंदोलन करने वाले ज्यादातक लोग पगड़ीधारी नज़र आ रहे हैं...  मैं यह नहीं कह रहा कि देश के दूसरे हिस्सों में पगड़ीधारी नहीं हैं लेकिन देश के दूसरे हिस्सों में ज्यादातर सिख व्यापारी हैं...  किसान नहीं. 



अब आपको भारतीय किसान यूनियन के हरियाणा प्रमुख गुरुनाम सिंह के बारे में बताते हैं...गुरुनाम सिंह 1979 में 307 के मामले में २ साल की सजा काट चुके हैं. 307 का दूसरा मामला उनपर चल रहा है...1981 के एक 342 के केस में एक साल की सजा काट चुके है... एकबार 120B के मामले में सजा काट चुके हैं... इसके साथ साथ अब भी कई मामले दर्ज हैं ... उनमें सबसे गंभीर तीन दंगा फ़ैलाने के केस पहले से चल रहे थे... संलग्न की गई तस्वीर में PROFESSION जरुर देखें... वे एक COMMISION AGENT हैं.   


 



किसानों के एक और नेता सुर्खियों में हैं नाम है दर्शन पाल...  दर्शन पाल पटियाला में आंखों के डॉक्टर हैं उनका बड़ा हॉस्पिटल है... खालिस्तान के समर्थक माने जाते हैं..  जानकारी के अनुसार दर्शन पाल खालिस्तानीयों का ब्लैक मनी वाइट करते हैं ...आजकल किसान नेता के वेश में है...

नौटंकी सिर्फ सड़कों पर ही नहीं हो रही.. अवार्ड वापसी नए फॉर्मेंट में आपके सामने है...  एनडीए सरकार में पूर्व कैबिनेट मंत्री और पंजाब के 5 बार मुख्यमंत्री रहे प्रकाश सिंह बादल ने कृषि बिल को लेकर विरोध जताते हुए पद्मविभूषण पुरस्कार लौटा दिया... 

क्या विरोध सचमुच कृषि बिल का है या बात कुछ और है? 

पंजाब की राजनीति में लंबे समय से देखा जाता रहा है कि जो भी पार्टी या नेता सत्ता से दूर हो जाता है वापसी के लिए खालिस्तानी समर्थकों का सहारा लेता है.  80 के दशक में  भूतपूर्व  प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और संजय गांधी ने  चुनाव हारने के बाद जैल सिंह की मदद से  जरनैल सिंह भिंडरवाले जैसे भस्मासुर पैदा किया...जिसने बाद में खालिस्तानी मूवमेंट शुरु कर दिया...  भिंडरवाले की मदद से वे अकाली दल को हटा कर सत्ता में वापसी करना चाहते थे... अब 2017 के चुनावों में हार के बाद बादल परिवार और अकाली दल उसी इतिहास को दोहरा रहे हैं... 


अकाली दल SGPC  (शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी) पर पूर्ण नियंत्रण रखता है...और SGPC ही पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेशन और चंडीगढ़ में सिख श्राइनों का प्रबंधन देखती है..  उसी SGPC ने 2017 में एक प्रस्ताव पास किया है. इसके अनुसार  गोल्डन टेंपल परिसर में बनाये गए मेमोरियल में  खालिस्तानी नेता भिंडरवाले की 300 तस्वीरों को लगाए जाने का प्रस्ताव है. फरवरी 2017 में ही पंजाब के अलग-अलग स्थानों पर इन लोगों ने भिंडरवाले की दर्जनों प्रतिमाएं लगाई थीं. सुरक्षा एजेंसियों की मानें तो  कनाडा, यूएस, ब्रिटेन और कई अन्य देशों से खालिस्तानी फंडिंग की जा रही है. यह फंडिंग  मुख्य रूप से अकाली दल और आम आदमी पार्टी  द्वारा संचालित और नियंत्रित एनजीओ में किये जा रहे हैं...  

खुद कैप्टन अमरिंदर गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात में इस बात को उठा चुके हैं कि किसानों के आंदोलन से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है...  उनका आशय और इशारा आसानी से समझा जा सकता है...   

समझना तो मोदी सरकार को भी चाहिए था कि राजनीतिक संबंधों के कारण पद्म पुरस्कार देना नहीं चाहिए और अपात्रों को तो बिलकुल नहीं देना चाहिए! सुखदेव सिंह ढींडसा और प्रकाश सिंह बादल ने उस भूल का अहसास कराया है! आशा है आगे इस तरह की चाटुकारिता नहीं होगी! 

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...