बुधवार, 9 दिसंबर 2020

‘टू मच ऑफ डेमोक्रेसी’

 

AMITABH KANT

नीति आयोग के चेयरमैन अमिताभ कांत ने एक प्रोग्राम में विशेष संदर्भ पर कहा था कि ‘टू मच ऑफ डेमोक्रेसी’ से सुधारों में धीमापन आता है. (इसका उल्लेख मैं आगे करुंगा..)  भारत में बिलकुल यही स्थिति है. कुछ लोग मुझसे पूछ रहे हैं...  "टू मच ऑफ डेमोक्रेसी" क्या है? 

‘टू मच ऑफ डेमोक्रेसी’ सीएए के खिलाफ और आने वाले एनआरसी के खिलाफ आपको अतिशांति प्रिय स्थानों पर दिखी थी. ‘टू मच ऑफ डेमोक्रेसी’ वही है जो आपको शाहीन बाग में दिखी. ‘टू मच ऑफ डेमोक्रेसी’ में संसद में पास बिल का विरोध नहीं होता बल्कि एक पूरे के पूरे शहर को 100-50 लोगों की भीड़ द्वारा बंधक बना लिया जाता है. 

लेकिन हे डेमोक्रेसी के रक्षकों क्या आपको पता है? संसद में पास हुए कानून पर आपत्ति जताने का अर्थ है करोड़ों लोगों के निर्णय पर आपत्ति...  संसद में बैठे लोग स्वंय वहां जा कर नहीं बैठे हैं उन्हें यहां की जनता ने एक "डेमोक्रेटिक" तरीके से वहां भेजा है. जिस काम के लिए भेजा यदि वे नहीं करेंगे तो अगली बार नहीं भेजेंगे.  जो सरकार चुनी गई है, वो कानून बनाएगी क्योंकि उसको उसी कारण चुना गया है. फिर शाहीन बाग क्यों खड़ा हो जाता है? किसान आंदोलन के नाम पर राशन ले कर बैठे लोग ‘अन्नदाता’ की नौटंकी क्यों करने लगते हैं?

‘टू मच ऑफ डेमोक्रेसी’ में वो लोग, जिन्हें सत्ता नहीं मिली, अपने मन के कानून बनवाना और हटवाना चाहते हैं, और इस जिद के साथ  सत्ता के बाहर हो कर भी सत्ता पर नियंत्रण चाहते हैं.

कुछ ऐसे लोग जिनका काम ही धरना प्रदर्शन करना है या किसी भी प्रदर्शन में शामिल होकर फोटो खिंचवाना है... वो लोग इसी "टू मच ऑफ डेमोक्रेसी" का फायदा उठाते हैं और नाले से पानी पास न होने को लेकर मुहल्ले के प्रोटेस्ट से लेकर अन्ना आंदोलन जैसे बड़े आंदोलन में शामिल हो जाते हैं. वो अलग बात है कि अपने दम पर शायद प्रधानी का भी चुनाव न जीत पायें लेकिन भारत बंद की बात कर के फुटेज खाते रहते हैं.  

मैं पहले भी इस तथाकथित किसान आंदोलन को फर्जी बता चुका हूं.. इसलिए उस पर बात नहीं करुंगा..उसे आप मेरे पिछले पोस्ट में पढ़ सकते हैं...  

अमिताभ कांत ने ‘टू मच ऑफ डेमोक्रेसी’ किस संदर्भ में कहा वो आपके सामने रखता हूं निर्णय आप स्वंय करें कि उनका आशय सही था या नहीं...अमिताभ ने स्वराज्य पत्रिका  के कार्यक्रम को वीडियो कॉन्फ्रेन्स के जरिये संबोधित करते हुए  कहा था कि देश को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिये और बड़े सुधारों की जरूरत है. नीति आयोग के सीईओ अमिताभ ने कहा था, पहली बार केंद्र ने खनन, कोयला, श्रम, कृषि समेत विभिन्न क्षेत्रों में कड़े सुधारों को आगे बढ़ाया है. अब राज्यों को सुधारों के अगले चरण को आगे बढ़ाना चाहिए.  भारत के संदर्भ में कड़े सुधारों को लागू करना बहुत मुश्किल है. इसकी वजह यह है कि चीन के विपरीत हम एक लोकतांत्रिक देश हैं ... हमें वैश्विक चैंपियन बनाने पर जोर देना चाहिए. आपको इन सुधारों (खनन, कोयला, श्रम, कृषि) को आगे बढ़ाने के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है और अभी भी कई सुधार हैं, जिन्हें आगे बढ़ाने की आवश्यकता है.'' उन्होंने यह भी कहा था कि कड़े सुधारों को आगे बढ़ाये बिना चीन से प्रतिस्पर्धा करना आसान नहीं है...

जब आप चीनी सामान के बायकॉट की बात करते हैं और पूरा देश आपके साथ खड़ा हो जाता है...  तो आपकी जिम्मेदारी है कि बायकॉट के बाद उस सामान का विकल्प भारतीय बाज़ार में उपलब्ध हो... बहुत से ऐसे लोग हैं जो नया उपकरण खरीदने से पहले पूछते हैं "चीन का तो नहीं है?" यदि उनके पास दूसरे विकल्प मौजूद हैं तो वे अधिक मूल्य देकर भी चीनी सामान का विकल्प चुनते हैं... भले ही वह उत्पाद भारतीय न हो.. सोचिये अगर उत्पाद भारतीय मिलने लगें तो चीन के साथ यह प्रतिस्पर्धा जीतने में हमे कितना समय लगेगा? 

सरकारों को डर होता है कि यदि उन्होंने नाजायज मांगो को लेकर भी हो रहे प्रदर्शन पर बल प्रयोग किया तो उन्हें अलोकतांत्रिक(एंटी डेमोक्रेसी) घोषित कर दिया जायेगा...इसी का फायदा उठाकर कुछ लोग टू मच ऑफ डेमोक्रेसी की तरफ बढ़ जाते हैं...

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...