शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

किसानों के नाम पर दलाल अपने काम पर?

   


कृषि बिलों को लेकर नौटंकी अब भी जारी है.  देश का मज़ाक बनाकर रख दिया गया है. दोषी सभी हैं किसी ने भी अपने उत्तरदायित्व का पालन नहीं किया.अफसोस की बात यह है कि सबसे कमजोर स्थिती में एक मजबूत सरकार है. जो किसानों के नाम पर जारी बिचौलियों के आंदोलन को खत्म करने में नाकाम रही है और बातचीत का दिखावा कर 2 टके के लोगों को राष्ट्रीय नेता बना रही है. हर बार बातचीत बेनतीजा रहती है और सरकार हर बार कथित किसानों को अगली वार्ता के लिए बुलाती है जबकि किसान नेता  कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हैं. शुरुआत में वे संशोधन चाहते थे. सरकार मान गई तो इन्हें अपनी मांग बदलनी पड़ी. अब जान बुझकर ऐसी मांग रखी गई कि 6 महीने का राशन खर्च हो जाए... विदेशी फंडिंग जारी रह सके. यही वजह है कि बार बार वार्ता बुलाई जाती है और बार बार वार्ता बेनतीजा ही खत्म हो जाती है. सरकार के ढिलेपन से किसान नेताओं को बलता मिलता जा रहा है और वे अपनी मनमानी पर उतर आये हैं.  अब तो उन्हें ऐसा भी लगने लगा है कि देश का सुप्रीम कोर्ट भी उनके पक्ष में है. उन्हें भी पता है कि वास्तव में इस बिल का विरोध ही निर्रथक है लेकिन फिर भी अगर सुप्रीम कोर्ट इस पर स्टे लगा रही है तो इसका साफ अर्थ है हम किसान-किसान खेलते हुए अपनी मनमानी कर सकते हैं.  चैनल वाले दिन भर हमारे आगे पिछे घूम रहे हैं. विदेशों से फंड आ रहा है. सड़कों पर 5 स्टार व्यवस्था है.  सरकार के बड़े मंत्री जी हुजूरी कर रहे हैं. यह सब भी भला  आसानी से हासिल होता है किसी को? 

आंदोलन के नाम पर सड़क जाम कर के ही तो बैठे हैं... कौन सी बड़ी बात हो गई? आम लोगों को परेशानी हो तो हो ... 

एक राज्य के मुट्ठी भर किसान देश भर के किसानों का फायदा कैसे देख सकते हैं भला? दूसरे राज्यों के किसान भी समृद्ध हो गए तो इन्हें कौन पूछेगा? 

26 जनवरी को झांकी निकले न निकले नकली किसानों का असली ट्रैक्टर जरुर निकलेगा. ट्रैक्टर वैसे तो खेतों में चलना चाहिए लेकिन खेतों में ट्रैक्टर चलाने वाले किसान होते हैं... किसानों को राजधानी की चमचमाती सड़कों पर ट्रैक्टर चलाने का शौख नहीं है.. किसानों को दिन भर में 50 इंटरव्यू देने का भी शौख नहीं है..  न ही उन्हें हेडलाइन्स में छाये रहने का लोभ है... आंदोलन के नाम पर जितने पैसे बहाए जा रहे हैं उतने पैसों से हजारों किसानों का कर्जा उतारा जा सकता था...  क्या आंदोलन का स्वरुप इस तरह का नहीं होना चाहिए था .. कि चलो सभी आंदोलनकारी किसान मिलकर गरीब किसानों की मदद करते हैं. राजधानी में ट्रैक्टर न चलाकर गरीब किसानों को ट्रैक्टर दान करते हैं और सरकार के मुंह पर तमाचा मारते हैं...  कि जो काम सरकार को करना चाहिए वह हम कर रहे हैं... मेरे कई जानने वालों मे अपनी प्राइवेट नौकरी सिर्फ इस लिए छोड़ दी क्योंकि उन्होंने नए कृषि कानूनों के लागु होने के बाद खेती करने की ठान ली थी..कृषि कानूनों के लागु न हो पाने की स्थिती में नौकरी से हाथ धोने वाले लोगों का क्या होगा? देश भर के उन किसानों का क्या होगा जो सालों से इस कानून की प्रतिक्षा में थे.  देश में पंजाब के अलावा 27 राज्य और हैं 8 केंद्रशासित प्रदेश और हैं वहां भी लोग रहते हैं वहां भी किसान हैं.  

सच तो यह है कि टिकैत राष्ट्रीय नेता की ये उपलब्धी जल्दी छोड़ना नहीं चाहता. कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियों को मुद्दे मिल नही रहे तो करें क्या? खालिस्तानियों और उसके समर्थकों को  एक्टिव होने और पैसे कमाने का मौका मिल गया...  सभी एक दूसरे के पूरक की तरह काम कर रहे हैं...  

ऐसे में बातचीत से हल कैसे हो? हर बार वही होगा जो आज हुआ...

केंद्र सरकार और नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे कथित किसान संगठनों के बीच 11वें दौर की बातचीत भी बेनतीजा रही. किसान नेताओं ने मीटिंग के बाद कहा, “सरकार द्वारा जो प्रस्ताव दिया गया था वो हमने स्वीकार नहीं किया. कृषि क़ानूनों को वापस लेने की बात को सरकार ने स्वीकार नहीं किया.  

‘किसान’ नेताओं के अड़ियल रवैए से जनसामान्य अपना आपा खो रहा है क्योंकि उनका जीवन भी प्रभावित होने लगा है.  कथित किसानों की मनमानी को देखते हुए लोगों के सब्र का बाँध टूटने लगा है और लोग आंदोलन में शामिल उन अराजक तत्वों पर कार्रवाई की मॉंग कर रहे हैं जो किसानों को ये समझने नहीं दे रहे कि उनके हित में क्या है क्या नहीं? 

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विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...