यह तस्वीर 31 साल की लुजैन की है... पूरा नाम लुजैन अल हैतलुल...सऊदी अरब की रहने वाली हैं... लुजैन दो दिन पहले सऊदी अरब की जेल से छुटकर घर आई हैं...1001 दिन से ये सऊदी की जेल में बंद थीं क्योंकि इन्हें पांच साल आठ महीने की सज़ा सुनाई गई थी...और सज़ा क्यों...क्योंकि इन्होंने सऊदी अरब में महिला अधिकार की बात कर दी थी...महिलाओं के लिए ड्राइविंग का मामूली सा अधिकार मांगा था...आंदोलन खड़ा कर दिया था...संयुक्त अरब अमीरात से कार चलाकर सऊदी में घुसने की कोशिश की थी...इनके दबाव में आकर सऊदी ने महिलाओं को ड्राइविंग का हक़ दिया लेकिन लुजैन पकड़ ली गईं...इन पर दुश्मन देश से मिलीभगत और खुफिया जानकारी बांटने का आरोप लगा...आतंकरोधी कानून के तहत केस चलने लगा...लुजैन को जेल भेज दिया गया... और यहां लुजैन को भयानक टॉर्चर किया गया... छत से लटकाया गया...बेंत से पिटाई की गई...बिजली के झटके दिये गए...पानी में डुबोकर पीटा गया... ओक औरत होकर लुजैन ने यह सब बर्दास्त कर लिया लेकिन इसके बाद जो हुआ... वह इससे भी घिनौना था... पूछताछ के नाम पर लुजैन के पास अक्सर नकाबपोश पहुंचने लगे...ये नकाबपोश जबरन लुजैन को अश्लील फ़िल्में दिखाते थे...किस्स करते थे...और रेप करते थे... तीन साल तक लगभग हर दिन उनके साथ इस तरह की हरकतें होती रहीं... जेल में उत्पीड़न के ख़िलाफ़ लुजैन ने भूख हड़ताल कर दी...अदालत में भी आपबीती बताई लेकिन अदालत को सबूत चाहिए थे... सबूत देता कौन?
लुजैन सऊदी की जेल में सब कुछ झेलती रही लेकिन तीन साल तक दुनिया के किसी हिस्से में आंदोलन नहीं हुआ...कहीं रिआना...खलीफा और ग्रेटा खड़ी नहीं हुईं...कहीं टूलकिट नहीं बनाये गए...कहीं सोशल मीडिया कैंपेन नहीं चला...और तो और जो ट्विटर आज हिंदुस्तान में फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन का ढोल पीट रहा है...भारत के टुकड़े करने वाले खालिस्तानी मंसूबे का साथ दे रहा है...उसे भी सऊदी में फ्रीडम ऑफ़ एक्स्प्रेशन का फॉर्मूला याद नहीं था...
सऊदी में महिला अधिकार की आवाज़ उठाई जाती है...उसे जेल में डाल कर बलात्कार किया जाता है... भारत में खालिस्तानी झंडे लगाये जाते हैं...ये फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन है...
सऊदी में ड्राइविंग का हक़ मांगा जाता है...उस पर आतंकवाद के आरोप लगते हैं...भारत में भिंडरावाले का झंडा लहराता है...ये किसान आंदोलन है
सऊदी में सरकार की आलोचना होती है...जमाल खशोगी की कांसुलेट के अंदर हत्या कर दी जाती है...भारत में आंदोलन की आड़ में देशद्रोह हो जाता है...ये मानवाधिकार है.
और इसी तरह फर्जी मानवाधिकार के फॉर्मूले और टू मच डेमोक्रेसी का फायदा उठाकर हिंदुस्तान के विरोधी अपने मिशन पर जुटे हुए हैं...और इसी तरह की दलील वो विदेशी सोशल मीडिया कंपनियों की ओर से दी जाती है जो कमाते खाते भी भारत की थाली में हैं और छेद भी उसी थाली में करते हैं... आंखे खोलिये...
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