लाशों के उपर लाश... सड़क पर लाश, नाले में लाश जहां तक नज़र जाए लाश ही लाश...लाशों को पलट-पलट कर अपनों की तलाश करते लोगों को देखकर यकीन कर पाना मुश्किल है कि ये वास्तविक तस्वीरें हैं, किसी फिल्म की क्लिप नहीं.
काबुल में धमाके की ख़बर हम यदा-कदा समाचार माध्यमों से पाते रहते हैं... लेकिन 26 अगस्त को जो धमाके हुए उसकी गुंज पूरी दुनियां में सुनाई दी. धमाके काबुल में हुए लेकिन दहल अमेरिका गया.
काबुल में 26 अगस्त की शाम एक के बाद एक 2 धमाके हुए और कुछ घंटो बाद तीसरे धमाके की भी खबर आई. धमाकों में 103 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की ख़बर है हालांकि जिस तरह की तस्वीरें सामने आई हैं मरने वालों की संख्या 150 से अधिक होनी चाहिए. मरने वालों में ज्यादातर अफगानिस्तानी नागरिक हैं जिनमें औरतें व बच्चे भी शामिल हैं. मरने वालों में अमेरिकी मरीन और नौसेना के दर्जन भर जवान भी शामिल हैं. घायलों की संख्या 200 के आस पास है और मरने वालों की संख्या और भी बढ़ सकती है.
इस्लामिक स्टेट के जिम्मेदारी लेने के बाद तालिबानी आतंकियों ने इस हमले को इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान (तालिबानियों द्वारा अफगानिस्तान को दिया गया नाम) पर आतंकी हमला करार दिया है. हमले के बाद की तस्वीरें एक इंसान के तौर पर आपको विचलित कर जायेंगी. लाशों के उपर लाश... सड़क पर लाश, नाले में लाश जहां तक नज़र जाए लाश ही लाश... लाशों को पलट-पलट कर अपनों की तलाश करते लोगों को देखकर यकीन कर पाना मुश्किल है कि ये वास्तविक तस्वीरें हैं किसी फिल्म की क्लिप नहीं.
इस उम्मीद के साथ कि ये मेरा शौहर न हो स्त्रीयां लाशों को पलट कर चेहरा निहार रही हैं... बच्चे बिलख रहे हैं... दुनियां भर में कोहराम मच गया.हर तरफ चींख, एंबुलेंस के सायरन, रुक-रुक कर होती गोलीबारी और चौथे व पांचवे धमाकों के अफवाह के बीच काबुल में रातभर खौफ का तांडव रहा.
भारत ने भी हमले की निंदा की. भारतीय होने के नाते हम भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं कि मरने वालों में एक भी भारतीय न हो. इश्वर का धन्यवाद है कि हमले के कुछ घंटो पहले ही भारतीय वीमान काबुल से उड़ान भर चुका था. अन्यथा मरने वालों में भारतीय नागरिकों के होने की संभावना अधिक हो जाती....
अब लोकतंत्र के स्वघोषित स्तंभो से पूछा जाना चाहिए कि अगर धमाके कुछ घंटे पहले हो जाते तो वे लानत किसको भेजते? उस आईएसआईएस को जिसने धमाकों की बेशर्मी के साथ जिम्मेदारी ली या उस तालिबान को जिसके आतंक के डर से लोग काबुल एयरपोर्ट पर जमा हुए? हूरों की बाहों में सोने की लालसा लिये बम बांध कर फटने वालों को या धमाके में इस्तेमाल किए गए विस्फोटकों को... किसे भेजा जाए लानत?
अफगानिस्तान में वही हो रहा है जो होना था. आज भले पूरी दुनियां अमेरिका को कोस रही है लेकिन क्या गलती अफगानिस्तान के लोगों की नहीं है? आईएसआईएस के आतंकी या तालिबानी आतंकी आखिर कौन हैं ? इन्हीं में से तो हैं. हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली तो तालिबान के प्रति सहानुभूति कैसी? तालिबानियों ने भी तो हथियार लहराते हुए देश भर पर कब्ज़ा कर रखा है. यह लड़ाई 2 आतंकी संगठनों के बीच की है. दोनों के रास्ते एक हैं, मकसद एक है कब्ज़े की पॉलिसी भी एक है और परिणाम भी एक होगा. अफगानिस्तान के ज्यादातर मर्द तालिबान को सपोर्ट करते हैं और बचे हुए इस्लामिक स्टेट को. इस्लाम के नाम पर बनाए गए इस संगठन को खुली चुनौती देते हुए दुनियां भर के मुसलमानों को उनसे पूछना चाहिए कि 13 अमेरिकी सैनिकों के अलावा मारे गए लोग किस मजहब से थे?
लेकिन वो नहीं पूछेंगे क्योंकि हक़ीकत उन्हें भी पता है.
शहर के शहर तालिबानी आतंकियों को फूलों की माला पहनाकर स्वागत करने वाले अफगानी अपने दुर्भाग्य का स्वागत कर रहे थे. मजहब के नाम पर कट्टरता को सपोर्ट करने का परिणाम यही होगा. महिलाओं और लड़कियों पर मनमानी करने के अधिकार पाने की लालसा में अफगानिस्तान के मर्द तालिबान के साथ यलगार कर रहे थे. इस्लामिक सत्ता कायम करने की लालसा में इस्लामिक स्टेट और तालिबान दोनों इस्लाम के नाम पर लोगों का खून बहा रहे हैं. उन इलाकों में गैर मुस्लिमों की संख्या कम है तो मुसलमानों को ही मारा जा रहा है. मारने के बाद वो तय करते हैं कि ये सच्चे मुसलमान नहीं थे और 56 मुल्कों वाली कम्यूनिटी हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती है. क्योंकि इनमें से भी ज्यादातर लोग इन कट्टरपंथियों के साथ खड़े हैं. काबुल हमलों की निंदा करने वाले भी अंदरखाने खुश हो रहे हैं कि भले हमारे 100 लोग मरे लेकिन 13 अमरिकीयों को तो निपटा दिया...
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