साउथ अफ्रीका के खिलाफ केप टाउन के न्यूलैंड्स (Newlands, Cape Town) में खेले गए वनडे मुकाबले में भारत की टीम को महज चार रन से पराजय झेलनी पड़ी. दीपक चाहर ने 54 रन की पारी खेलकर भारत की वापसी कराई लेकिन अंत में उनके आउट होने के बाद टीम बिखर गई. इस जीत के साथ ही भारत को सीरीज में 0-3 से क्लीन स्वीप झेलनी पड़ी. इससे पहले टेस्ट सीरीज में भी भारत को 1-2 से शिकस्त झेलनी पड़ी थी और उसके पहले वर्ल्ड कप में हम कुछ खास नहीं कर पाए थे. सबसे महंगे बोर्ड के सबसे महंगे खिलाड़ी सबसे अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं. ऐसा लगातार हो रहा है. टीम के खिलाड़ियों के बीच मतभेद की खबरें भी हैं. यदि टीम के खिलाड़ियों के बीच मतभेद हुआ तो टीम अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएगी.
विराट कोहली की गिनती भारत के सफलतम कप्तानों में की जाएगी. विश्व के तीसरे सबसे सफल, आधुनिक क्रिकेट के सर्वोत्तम बल्लेबाज… भारत को टेस्ट क्रिकेट में नंबर एक तक ले गए, कोई संदेह नहीं है.
धोनी के समय से ही जो टीम लगातार कन्सिस्टेंसी से प्रदर्शन करती रही, जीतने के लिए जुझारुपन दिखाती रही, पेस बॉलिंग के खिलाफ आक्रमकता … यह सब कोहली के कप्तानी के दौरान भी हुआ.
टीम अच्छा खेल रही थी हम लगातार जीत रहे थे. बहुत अच्छा चल रहा था. इसके बाद अचानक से भारतीय टीम के कप्तान में क्रिकेट से अलग वोक बनने का कीड़ा लगा. मेरे भाई धनंजय के शब्दों में कहें तो विराट कोहली अब ब्रांड कोहली हो चुके हैं. विराट को दीपावली पर कुत्तों की चिंता होने लगी, वो ट्रोलों को उत्तर देने लगे, एक घमंड दिखने लगा. राष्ट्र के प्रतिनिधित्व के गौरव की जगह ‘मैं खेलता हूँ, तुम बस देखते हो’ का घमंड बाहर दिखने लगा.
प्रेस वार्ता में ‘सोशल मीडिया पर क्या चल रहा है’ पर प्रतिक्रिया देने वाले विराट बैटिंग में कम और विवादों में अधिक दिखने लगे. तीन साल से उन्होंने एक भी शतक नहीं लगाया है. नतीजतन टीम उसी दौर में चली गई जब हम बड़े मैच, फायनल और सेमिफ़ाइनल हार जाते थे. हाल में टीम के परिणाम देखिए तो टी२० से ले कर टेस्ट चैम्पियनशिप के फायनल तक जीतने के एटीट्यूड की जगह ‘दिस इज जस्ट अनदर मैच’ वाले एटीट्यूड ने ले लिया.
यह टीम के पतनोन्मुख होने के संकेत हैं. कुछ मैच ‘जस्ट अनदर मैच’ नहीं होते. खेलों में दबाव झेलना एक बहुत बड़ा हिस्सा होता है आपके नेतृत्व का. वही तो समय है स्वयं को साबित करने का. विराट कोहली ने कप्तान के तौर पर खूब द्विपक्षीय श्रृंखलाएँ जीतीं, टेस्ट में जीत का प्रतिशत दुनिया में तीसरा सबसे अच्छा है, लेकिन टेस्ट चैम्पियनशिप का फायनल जीतने की स्थिति से हारना भी बहुत कुछ कहता है. ऐसे ही हर ICC टूर्नामेंट में निराशाजनक प्रदर्शन भी दबाव झेलने की क्षमता के बारे में बहुत कुछ कहता है.
कोहली की कप्तानी पर या उनके प्रदर्शन पर मैं बाहर से बैठा टिप्पणी नहीं कर सकता लेकिन पूर्व कप्तानों से तुलना कर सकता हूँ और एक परिणाम तक पहुंच सकता हूं. विराट कोहली, गांगुली के समय की याद दिलाते हैं जहाँ हर मैच जीत कर बड़ा मैच या फ़ाइनल हारना हमारी नियति थी.
‘वेल प्लेड ब्वॉय्ज’, वन मैच डजन्ट मेक अ डिफरेंस’ वाला एटीट्यूड प्रोफेशनल होने का संकेत है जबकि राष्ट्र के लिए खेलने में प्रोफेशनलिज्म से अधिक भारत के लिए पैशन चाहिए. प्रोफेशनलिज्म एथलीट जैसी काया बनाने में सही है, पाकिस्तान से हार कर मुस्कुराने और ‘ये भी बस एक मैच ही है’ कहने में नहीं.
अब जिस तरह क्रिकेट का खेल होने लगा है मुझे क्रिकेट से बहुत अधिक लगाव नहीं है, वस्तुतः तब जब क्रिकेट में ‘घुटने टेकने’ को सेलिब्रेट किया जा रहा हो. भारत में आतंकी घटनाओं, हत्याओं और नरसंहारों पर चुप रहने वाली टीम हमें पसंद थी, लेकिन अमेरिका के ब्लैक लाइव्स मैटर पर घुटने नीचे करने वाली सोच से मुझे ऐतराज है.
यही वो ICC थी जिसने धोनी की ग्लव्स को नियमों का हवाला दे कर हटवाया था. यही वो इवेंट था जब पाकिस्तान ने घुटने लगाने से मना किया, आप भी कर सकते थे. आपने नहीं किया क्योंकि आप वोक सम्राट बन कर महानता पाना चाहते थे.
मुझे लगता है क्रिकेट प्रेमियों को क्रिकेटरों से क्रिकेट चाहिए, उनका एक तरफा वाला ज्ञान नहीं. विराट कोहली बकैत कप्तान हो गए थे, एक घमंडी खिलाड़ी जिसे इन्स्टा पर ज्ञान देने में अधिक आनंद आ रहा था.
भारतीय क्रिकेट टीम में राजनेताओं की नहीं खिलाड़ियों की आवश्यकता है. टीम ही नहीं बल्कि बीसीसीआई के पदाधिकारी भी खिलाड़ी होने चाहिए न की किसी राजनेता के संबंधी. उनका चुनाव होना चाहिए सीधी नियुक्ति नहीं.
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