हम सब जानते
हैं कि दूसरे उद्योग धंधों की तरह फिल्म बनाना भी एक उद्योग है. फिल्म बनाने के लिए
अच्छी खासी रकम खर्च होती है. उस रकम की भरपाई फिल्म की थिएटर रिलीज़, Overseas Rights, सैटेलाइट
राइट्स,
ओटीटी और बाकी राइट्स बेचकर की जाती है.
फिल्म को
यूट्यूब पर अपलोड करने के पीछे का तर्क मेरे समझ में नहीं आया. यदि आप यह कहना चाह
रहे हैं कि टैक्स फ्री की मांग न करके इसे सीधे यूट्यूब पर अपलोड कर देना चाहिए तो प्रश्न
यह है कि क्या इसके पहले फिल्में टैक्स फ्री नहीं की गईं? उन्हें क्यों नहीं यूट्यूब पर अपलोड करने की बात उठी?
फिल्म देखकर
आने के बाद जब आप सोशल मीडिया पर उसकी तारीफ कर रहे होते हैं लोगों से अपील कर रहे
होते हैं कि अमुक फिल्म देखनी चाहिए उस वक्त फिल्म बनाने वालों से आप क्यों नहीं कहते
कि भाई फलां फिल्म में संदेश छिपा है इसे यूट्यूब पर अपलोड कर दो? इसी को सेलेक्टिव नैरेटिव पर काम करना
कहते हैं.
केजरीवाल
जी ने व्यंग करते हुए फिल्म को झूठा कहा. आपको पहले से पता है कि फिल्म का विषय क्या
है ?
फिल्म कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार व पलायन की कहानी है. जो एक सच्ची
घटना है. विवेक अग्निहोत्री दावा कर रहे हैं कि उनके पास सारे डॉक्यूमेंट्स हैं जो
उनके द्वारा दिखाए गए दृश्यों की सच्ची गवाही हैं. 5 सालों से मैं भी कश्मीर के लिए
खबरें बनाता हूं. वहां के लोगों से जुड़ा हुआ हूं. लोगों का कहना है कि 3 घंटे की फिल्म
हमारे तीन दशक के दर्द को क्या ही स्क्रीन पर उभारेगी. अर्थात जो दिखाया गया दर्द उससे
कहीं बढ़कर है.
खैर सवाल
यह कि फिल्म को उन्होंने झूठा क्यों कहा ? क्या उन्हें 90 की
दहाई की घटनाओं की जानकारी नहीं होगी? ऐसा होना मुश्किल है क्योंकि
जितनी चर्चा इस देश में कश्मीरी पंडितों के लेकर हुई है यह कहना कि उन्हें कश्मीरी
पंडितों की त्रासदी के बारे में जानकारी नहीं है गलत होगा. या तो उन्होंने फिल्म नहीं
देखी... तो बिना फिल्म देखे आप इसके सच्चे या झूठे होने की बात कैसे कर सकते हैं?
या आप यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि आज के समय में बीजेपी को कोई
चैलेंज कर सकता है तो वह (आप पार्टी) है और आप हैं. फिल्म के प्रचार के लिए बीजेपी
नेताओं को आड़े हाथों लेना समझ आता है अगर फिल्म का प्रचार कर बीजेपी नेता अपनी राजनीति
साध रहे हैं तो आप भी इस प्रचार के लिए उनकी आलोचना कर अपनी राजनीति साध सकते हैं,
लेकिन द कश्मीर फाइल्स को झूठी फिल्म कहना संवेदनहीनता का उदाहरण है.
फिल्म के तथ्यों व घटनाक्रम को लेकर बहस हो सकती है लेकिन जब तक आप उन्हें झूठा साबित
न कर दें फिल्म को झूठा नहीं कह सकते.
अच्छा तो
होता कि केजरीवाल जी बीजेपी नेताओं के आमंत्रण को स्वीकार करते और महादेव रोड स्थित
फिल्म डिवीजन में द कश्मीर फाइल्स की स्पेशल स्क्रीनिंग में पहुंचते. फिल्म देखते यदि उन्हें फिल्म में कुछ झूठा लगता है तो वे इसपर
संवाद करते, जनता के बीच अपनी बात रखते, वे तथ्य रखते जिससे साबित हो कि फिल्म झूठी है. लेकिन उन्होंने इस आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया
और दिल्ली बीजेपी के नेताओं ने केजरीवाल जी की सीट खाली रखी.
आश्चर्य
है कि आज भी एक वर्ग सच को स्वीकार नहीं कर रहा. कश्मीरी पंडितों के साथ दर्द साझा
करने की जगह सवाल खड़े करने की कोशिश में है. सवाल ही खड़े करने हैं तो केंद्र सरकार
पर सवाल खड़े कीजिए कि 7-8 साल हो गए कितने कश्मीरी पंडित कश्मीर में बस चुके हैं? उनसे पूछिए क्या कश्मीरी पंडित अब शरणार्थियों की तरह जीवन व्यतित नहीं कर
रहे? क्या उन्हें उनके पुरखों की जमीन लौटा दी गई ? यदि आप ज़ख्मों पर मरहम नहीं लगा सकते तो कम से कम उन्हें कुरेदिये भी मत.
अरविंद केजरीवाल
जी,
मरहम नहीं लगा सकते तो कम से कम ज़ख्मों को कुरेदिये भी मत
द कश्मीर
फाइल्स जब रिलीज हुई तो शुरुआती दिनों में इसे लेकर ज्यादा शोर नहीं मचा. बस हुआ यह कि फिल्म देखकर आने वाले लोग दूसरों को द कश्मीर फाइल्स देखने के
लिए प्रेरित करने लगे. देखते-देखते भारी संख्या में लोग नजदीकी सिनेमा घरों
में पहुंचने लगे ज़ाहिर सी बात है जब इतनी संख्या में लोग सिनेमाघरों में पहुंचेंगे
तो फिल्म की कमाई भी बढ़ेगी. अब जब फिल्म सुपरहिट हो गई तो कई
तरह की बातें सामने आने लगीं जैसे-
विवेक अग्निहोत्री ने द कश्मीर फाइल्स बनाकर अच्छी कमाई की है
तो इसे कश्मीरी पंडितों को दे देना चाहिए, कुछ लोग कह रहे हैं
कि यदि विवेक अग्निहोत्री चाहते हैं कि फिल्म सभी लोग देखें तो इसे मुफ़्त में क्यों
नहीं दिखाया जा रहा सिर्फ टैक्स फ्री करने की मांग क्यों हो रही है? दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल तो कह रहे हैं कि फिल्म को यूट्यूब पर डाल
देना चाहिए इससे हर कोई उसे फ्री में देख लेगा. हम केजरीवाल के बयान पर बात करते हैं.
केजरीवाल के कहने का अंदाज़ कोई ऐसा नहीं था कि वे गंभीरता से विवेक अग्निहोत्री को
सलाह दे रहे थे. विधानसभा में केजरीवाल व्यंगात्मक
ढंग से बात कर रहे थे. उनके एक-एक वाक्य के बाद अट्टाहास गुंज रहा था. उन्होंने द कश्मीर
फाइल्स को दूसरी फिल्मों की तरह ही समझ लिया ऐसा लगता है, जबकि
सच्चाई यह है कि द कश्मीर फाइल्स कश्मीर में कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार पर बनाई गई
फिल्म है. जिसमें फिल्माई गई घटनाएं काल्पनिक नहीं है. यही वजह है कि लोग फिल्म से
इस तरह जुड़ रहे हैं. क्या केजरीवाल जी नहीं जानते कि इस वक्त फिल्म को लेकर जनता का
क्या मूड है. फिल्म के बहाने केजरीवाल जी न सिर्फ विवेक अग्निहोत्री
का मज़ाक बनाने की नासमझी कर रहे हैं बल्कि पीएम नरेंद्र मोदी पर भी व्यंग कर रहे हैं.
हम सब जानते
हैं कि दूसरे उद्योग धंधों की तरह फिल्म बनाना भी एक उद्योग है. फिल्म बनाने के लिए
अच्छी खासी रकम खर्च होती है. उस रकम की भरपाई फिल्म की थिएटर रिलीज़, Overseas Rights, सैटेलाइट
राइट्स,
ओटीटी और बाकी राइट्स बेचकर की जाती है.
फिल्म को
यूट्यूब पर अपलोड करने के पीछे का तर्क मेरे समझ में नहीं आया. यदि आप यह कहना चाह
रहे हैं कि टैक्स फ्री की मांग न करके इसे सीधे यूट्यूब पर अलोड कर देना चाहिए तो प्रश्न
यह है कि क्या इसके पहले फिल्में टैक्स फ्री नहीं की गईं? उन्हें क्यों नहीं यूट्यूब पर अपलोड करने की बात उठी?
फिल्म देखकर
आने के बाद जब आप सोशल मीडिया पर उसकी तारीफ कर रहे होते हैं लोगों से अपील कर रहे
होते हैं कि अमुक फिल्म देखनी चाहिए उस वक्त फिल्म बनाने वालों से आप क्यों नहीं कहते
कि भाई फलां फिल्म में संदेश छिपा है इसे यूट्यूब पर अपलोड कर दो? इसी को सेलेक्टिव नैरेटिव पर काम करना
कहते हैं.
केजरीवाल
जी ने व्यंग करते हुए फिल्म को झूठा कहा. आपको पहले से पता है कि फिल्म का विषय क्या
है ?
फिल्म कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार व पलायन की कहानी है. जो एक सच्ची
घटना है. विवेक अग्निहोत्री दावा कर रहे हैं कि उनके पास सारे डॉक्यूमेंट्स हैं जो
उनके द्वारा दिखाए गए दृश्यों की सच्ची गवाही हैं. 5 सालों से मैं भी कश्मीर के लिए
खबरें बनाता हूं. वहां के लोगों से जुड़ा हुआ हूं. लोगों का कहना है कि 3 घंटे की फिल्म
हमारे तीन दशक के दर्द को क्या ही स्क्रीन पर उभारेगी. अर्थात जो दिखाया गया दर्द उससे
कहीं बढ़कर है.
खैर सवाल
यह कि फिल्म को उन्होंने झूठा क्यों कहा ? क्या उन्हें 90 की
दहाई की घटनाओं की जानकारी नहीं होगी? ऐसा होना मुश्किल है क्योंकि
जितनी चर्चा इस देश में कश्मीरी पंडितों के लेकर हुई है यह कहना कि उन्हें कश्मीरी
पंडितों की त्रासदी के बारे में जानकारी नहीं है गलत होगा. या तो उन्होंने फिल्म नहीं
देखी... तो बिना फिल्म देखे आप इसके सच्चे या झूठे होने की बात कैसे कर सकते हैं?
या आप यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि आज के समय में बीजेपी को कोई
चैलेंज कर सकता है तो वह (आप पार्टी) है और आप हैं. फिल्म के प्रचार के लिए बीजेपी
नेताओं को आड़े हाथों लेना समझ आता है अगर फिल्म का प्रचार कर बीजेपी नेता अपनी राजनीति
साध रहे हैं तो आप भी इस प्रचार के लिए उनकी आलोचना कर अपनी राजनीति साध सकते हैं,
लेकिन द कश्मीर फाइल्स को झूठी फिल्म कहना संवेदनहीनता का उदाहरण है.
फिल्म के तथ्यों व घटनाक्रम को लेकर बहस हो सकती है लेकिन जब तक आप उन्हें झूठा साबित
न कर दें फिल्म को झूठा नहीं कह सकते.
अच्छा तो
होता कि केजरीवाल जी बीजेपी नेताओं को आमंत्रण को स्वीकार करते और महादेव रोड स्थित
फिल्म डिवीजन में द कश्मीर फाइल्स की स्पेशल स्क्रीनिंग में पहुंचते. फिल्म देखते यदि उन्हें फिल्म में कुछ झूठा लगता है तो वे इसपर
संवाद करते, जनता के बीच अपनी बात रखते, वे तथ्य रखते जिससे साबित हो कि फिल्म झूठी है. लेकिन उन्होंने इस आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया
और दिल्ली बीजेपी के नेताओं ने केजरीवाल जी की सीट खाली रखी.
आश्चर्य
है कि आज भी एक वर्ग सच को स्वीकार नहीं कर रहा. कश्मीरी पंडितों के साथ दर्द साझा
करने की जगह सवाल खड़े करने की कोशिश में है. सवाल ही खड़े करने हैं तो केंद्र सरकार
पर सवाल खड़े कीजिए कि 7-8 साल हो गए कितने कश्मीरी पंडित कश्मीर में बस चुके हैं? उनसे पूछिए क्या कश्मीरी पंडित अब शरणार्थियों की तरह जीवन व्यतित नहीं कर
रहे? क्या उन्हें उनके पुरखों की जमीन लौटा दी गई ? यदि आप ज़ख्मों पर मरहम नहीं लगा सकते तो कम से कम उन्हें कुरेदिये भी मत.
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