गुरुवार, 19 जनवरी 2017

आधा- आधा पूरा जीवन

आधा आधा पूरा जीवन।
तन परदेश में घर में मन।।
भीगी आँखे जायदाद बनाये।
भावुकता भगवान दिखाये।।
भीतर या बाहर से टूटे।
रिश्ते नाते घर बार छूटे।।
बिजली कौंधे तो आँख लगे।
न जाने हम हैं कब के जगे।।
दिल पर भारी चोट लगी।
महंगी पड़ गयी दिल की लगी।।
लिख कर ले लूँ तसल्ली।
मेहबूब तो चली अपनी गली।।

इस कविता पर राजन कुमार झा का सर्वाधिकार है। उनके पूर्वानुमति के बिना कविता के किसी भी पंक्ति को उद्धृत किये जाने पर कड़ी क़ानूनी कार्र्यवायी होगी।

2 टिप्‍पणियां:

विजयी भवः

सुमार्ग सत को मान कर निज लक्ष्य की पहचान कर  सामर्थ्य का तू ध्यान  कर और अपने को बलवान कर... आलस्य से कहो, भाग जाओ अभी समय है जाग जाओ...